एक दीप प्रेम का जल जाए,
मैं ऐसा नेह लगाऊं क्या?
स्वच्छ रहे गांव और नगरी,
रंग रोगन घर में हो जावे,
उस कलुषित मन की गाथा में,
दिल को स्नेहिल कर पाऊँ क्या?।1
एक दीप ....।
निशा गहन है इस चेतन में,
अमावस दीप सब जले यहाँ,
रोशन होती इस रात्रि पहर में,
मन से अंधेरा मिटा पाऊँ क्या?
एक दीप....।
विजय दिवस का दीप जले,
आगमन सुखद हर खुशियाँ हो,
हर्षोल्लास की हर पल तरंगें हों,
दुर्गुण को सर्वनाश दिला पाऊँ क्या?
एक दीप ....।
शरद ॠतु अभिनन्दन है,
'लक्ष्मी जी' का वन्दन है।
'दीपावली' शुभ हो 'अनिल' कहे,
आपस का उष्ण मिटा पाऊं क्या?
एक दीप ......।
~ अनिल कुमार बरनवाल
27.10.2019