अमावस के विरह अंधेरे में,
~ अनिल कुमार बरनवाल
22.10.2019
मैं पूनम का कोई गीत लिखूं।
तुम आ जाओ कोई बात बने,
मैं अपनापन का गीत लिखूं।।
जीवन में गिर कर उठता हूं,
कुछ उन लम्हों को तकता हूं।
उस अनुभव को एक स्वर दे दूं,
जिस अनुभव पर कुछ थकता हूं।
थककर भी मैं इस चितवन में,
प्रियतम सा सुन्दर मीत दिखूं।
मैं अद्भुत अनुपम गीत लिखूं।।
हे विधा लेखनी जीवन की,
कागज और कलम समेटे है,
उस कलम लपेटे स्याही से,
मैं अक्श मनोहर घर कर दूं।
हे अक्श धरोहर व मधुरिम,
मैं तुझमें अपना प्रीत दिखूं।
मैं सुमधुर सुंदर गीत लिखूं।।
~ अनिल कुमार बरनवाल
22.10.2019
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