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Tuesday, October 22, 2019

सुख आवे दिन मधुकर बीते

सुख आवे दिन मधुकर बीते,
दुख में रैना भी खलती है।
चादर में पैर पसारू तो,
फिर सारी देह उघरती है।।
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सुख बिन बांटे बंट जाता,
पर कष्टों की उम्र भयावह है।
फिर भी जीने की अभिलाषा,
मुझको कैंसर सी लगती है।।
सुख.....।

जीवन ने दिए बहुत अनुभव,
उसकी हर व्यथा निराली है।
मैं याद करूं फिर से किसको
दिल में इक आग सी जलती है।।
सुख.....।

ऋतु की तरह मिला जीवन,
मौसम सा रंग बदलता है।
बगिया में फूल भले कम हो,
कांटो में दुनिया पलती है।।
सुख .....।

'अनिल' लिख रहा है क्यों तू?
क्या कोई सुनने आएगा?
हर प्राणी व्यस्त यहां पर है,
बस समय की केवल चलती है।।
सुख ..... ।

~ अनिल कुमार बरनवाल
21.10.2019

Thursday, September 13, 2018

एक पल ठहरा नहीं

एक पल ठहरा नहीं,
कि दिल मेरा थकने लगा।
रूह को महसूस करके,
सांस अब चलने लगा।
कल्पना आलेख लेकर,
आज ऐ तनहाइयां,
कब सबल एक साथ पाईं,
दिल मेरा हिलने लगा।
हर सफर के साथ का सुख,
सफर के अन्दाज का सुख,
हमसफर का बोध लेकर,
मन मयूरी आस लेकर
आज अब विश्वास लेकर,
दिल का सिला मिलने लगा,
'अनिल' सांस हर चलने लगा।

~ अनिल कुमार बरनवाल
12.09.2018

आज अश्को में नहा लीजिए

आज अश्को में नहा लीजिए,
कल सुबह होगी तो कुछ बात होगी।
दर्द दिल का कुछ तो बता दीजिये,
गम निपट जाए तो कुछ बात होगी।
लोग बेवजह नशा ढूंढते है शराब में,
मस्त आंखो में पिया कीजिए तो कुछ बात होगी।
मय्यते जहान में क्यूं घुटा करते हैं,
जिन्दा जहान में निपट लें तो कुछ बात होगी।
आप रोएं रूला न ले औरों को,
रोनी सूरत को हंसा दे तो कुछ बात होगी।
कल बिछडेंगे आज तो मिल बैठें,
आज के सुख मे कल का शोक भूला दें तो कुछ बात होगी।

~ अनिल कुमार बरनवाल
12.09.2018