सुख आवे दिन मधुकर बीते,
दुख में रैना भी खलती है।
चादर में पैर पसारू तो,
फिर सारी देह उघरती है।।
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सुख बिन बांटे बंट जाता,
पर कष्टों की उम्र भयावह है।
फिर भी जीने की अभिलाषा,
मुझको कैंसर सी लगती है।।
सुख.....।
जीवन ने दिए बहुत अनुभव,
उसकी हर व्यथा निराली है।
मैं याद करूं फिर से किसको
दिल में इक आग सी जलती है।।
सुख.....।
ऋतु की तरह मिला जीवन,
मौसम सा रंग बदलता है।
बगिया में फूल भले कम हो,
कांटो में दुनिया पलती है।।
सुख .....।
'अनिल' लिख रहा है क्यों तू?
क्या कोई सुनने आएगा?
हर प्राणी व्यस्त यहां पर है,
बस समय की केवल चलती है।।
सुख ..... ।
~ अनिल कुमार बरनवाल
21.10.2019
दुख में रैना भी खलती है।
चादर में पैर पसारू तो,
फिर सारी देह उघरती है।।
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सुख बिन बांटे बंट जाता,
पर कष्टों की उम्र भयावह है।
फिर भी जीने की अभिलाषा,
मुझको कैंसर सी लगती है।।
सुख.....।
जीवन ने दिए बहुत अनुभव,
उसकी हर व्यथा निराली है।
मैं याद करूं फिर से किसको
दिल में इक आग सी जलती है।।
सुख.....।
ऋतु की तरह मिला जीवन,
मौसम सा रंग बदलता है।
बगिया में फूल भले कम हो,
कांटो में दुनिया पलती है।।
सुख .....।
'अनिल' लिख रहा है क्यों तू?
क्या कोई सुनने आएगा?
हर प्राणी व्यस्त यहां पर है,
बस समय की केवल चलती है।।
सुख ..... ।
~ अनिल कुमार बरनवाल
21.10.2019
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