Monday, June 25, 2018

आओ हम कुछ प्रतिकार करें

कंठो के उन्मुक्त वारो का,
सर्पों सी उत्पल चालों का,
दिल दुखा रही दिलवालों का,
प्रिय आओ हम संहार करे।
आओ हम कुछ प्रतिकार करें।।



जीवन में रस जब बचे नहीं,
हम खड़े खड़े बच जंचे नहीं,
खाए भी न पर पचे नहीं,
कुछ रच जच पच उपचार करें।
आओ हम कुछ प्रतिकार करें।।



अब तीक्ष्ण भीष्म सी गर्मी है,
अरू उष्णता आज हठधर्मी है,
बट बृक्ष कटे उसे जननी है,
पर्यावरण हम कुछ सुधार करें।
आओ हम कुछ प्रतिकार करें।।



भाईचारे का बोध करें,
कटुता शंका पर शोध करें,
जग जन में सुधा प्रबोध करें,
मानवता हम साक्षात्कार करें।
आओ हम कुछ प्रतिकार करें।


~ अनिल कुमार बरनवाल

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