बनो वृक्ष की तरह
धरा को बांधे रखती है।
वह पत्तों की छाया से,
शीतल मन सुख भरती है।
जीती है जब तक वह,
गुण दे,कष्टों को हरती है।
मर कर भी वह हरदम,
चौखट मचिया बन सजती है।
वायु शुद्ध हो मानवता की,
सांसों मे पवन सुधा भरती है।
पेड काटकर हम पृथ्वी पर,
सुन्दर सा महल बनाते है।
भूस्खलित हुई धरती और,
प्रदूषण जन वन तडपाते हैं।
सेवा दें पौधे सी माहिर,
जो जी लें दूजे की खातिर।
'अनिल' कहे हम पौधों से,
जीने का मकसद पा जाएं।
हरियाली जीवन भर देंवे,
और अमर कीर्ति पा जाएं।।
~ अनिल कुमार बरनवाल
धरा को बांधे रखती है।
वह पत्तों की छाया से,
शीतल मन सुख भरती है।
जीती है जब तक वह,
गुण दे,कष्टों को हरती है।
मर कर भी वह हरदम,
चौखट मचिया बन सजती है।
वायु शुद्ध हो मानवता की,
सांसों मे पवन सुधा भरती है।
पेड काटकर हम पृथ्वी पर,
सुन्दर सा महल बनाते है।
भूस्खलित हुई धरती और,
प्रदूषण जन वन तडपाते हैं।
सेवा दें पौधे सी माहिर,
जो जी लें दूजे की खातिर।
'अनिल' कहे हम पौधों से,
जीने का मकसद पा जाएं।
हरियाली जीवन भर देंवे,
और अमर कीर्ति पा जाएं।।
~ अनिल कुमार बरनवाल
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