Wednesday, June 27, 2018

अमर कीर्ति पा जाएं

बनो वृक्ष की तरह
धरा को बांधे रखती है।
वह पत्तों की छाया से,
शीतल मन सुख भरती है।

जीती है जब तक वह,
गुण दे,कष्टों को हरती है।
मर कर भी वह हरदम,
चौखट मचिया बन सजती है।

वायु शुद्ध हो मानवता की,
सांसों मे पवन सुधा भरती है।
पेड काटकर हम पृथ्वी पर,
सुन्दर सा महल बनाते है।

भूस्खलित हुई धरती और,
प्रदूषण जन वन तडपाते हैं।
सेवा दें पौधे सी माहिर,
जो जी लें दूजे की खातिर।

'अनिल' कहे हम पौधों से,
जीने का मकसद पा जाएं।
हरियाली जीवन भर देंवे,
और अमर कीर्ति पा जाएं।।

~ अनिल कुमार बरनवाल

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