Monday, July 23, 2018

मन जीत गया हम हार गए

जीवन मे खोया पाया था,
एक आस जगत का साया था
आशा मे सांस समाई थी,
हमे दिख न सका वह खाई थी,
हम उस पर शमां निसार गए।
मन जीत गया हम हार गए।।

मन चंचल था मन निश्छल था,
आंखो मे सपना विह्वल था,
सपनों मे रात बिसार दिए,
कुछ सृजन किया कुछ वार दिए,
सपनों मे मन श्रृंगार भए।
मन जीत गया हम हार गए।।

मन वात्सल्य सा आतुर था,
कुछ चपलित था कुछ कातर था,
वह पा ममत्व भावविभोर हुआ,
जीवन का एक सिरमौर हुआ,
मन की आभा का ठौर भए।
मन जीत गया हम हार गए।।

पाती अब पढी नहीं जाती,
लिखने वाले भी नहीं रहे,
संवेदन मर कर जिन्दा है,
लाशें भी अब शर्मिंदा है,
कह 'अनिल' सब वार गए।
मन जीत गया हम हार गए।।

~ अनिल कुमार बरनवाल
23.07.2018

5 comments:

  1. बहुत ही सुंदर और मनभावन कविता | आपको बहुत प्रणाम |
    - स्मिता

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  2. बहुत बहुत सुंदर रचना। सच है मन को जितना भी चाहिए। मन के जीते जीत है, मन के हारे हार। रचना में रचनाकार ये कह रहा है कि शरीर चाहे हार गया, पर मेरा मन अभी जिंदा है। मन जीत गया तो आप भी नही हारे।।

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