Thursday, September 13, 2018

आओ अब हम बोध पाएं

आओ अब हम बोध पाएं,
प्रेम का अनुरोध पाएं,
प्रेम में न छल पिपासा,
कुछ कहें और कुछ दिलासा,
अब दिली कुछ शोध लाएं।
आओ अब हम बोध पाएं।।

भावना का है अंधेरा,
रोज खोजें हम सबेरा,
सुवह की लाली छटा है,
वक्त अब कैसे कटा है?
इस सुबह जीवन सजाएं।
आओ अब हम बोध पाएं।।

हरित बृक्षों की कमी है,
गगनचुंबी हो खडी हैं,
नव सृजन की आपधापी,
लहू लूहाती धरा व्यापी,
बसुधा मस्तक हम सजाएं।
आओ अब हम बोध पाएं।।

शिक्षितों की यह भूलैया,
कौन खेवे यह खैवैया,
रोजगारी एक मिथक है,
शिक्षा व्यापारी जनक है,
'अनिल' शिक्षित हो कमाएं।
आओ अब हम बोध पाएं।।


~ अनिल कुमार बरनवाल
24.07.2018

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