Thursday, September 20, 2018

जो हंसे न लहलहाके

जो हंसे न लहलहाके,
वो फसल फसल नहीं।
जो शरण न दे किसी को,
वह महल महल नहीं।
जो चढे न देवता को,
वो कमल कमल नहीं।
जो हरे न पीर मन की,
वो गज़ल गज़ल नहीं।

~ अनिल कुमार बरनवाल
20.09.2018

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