मन पावत है।
मन चाहत है।
मन कभी कभी,
समझावत है।
मन हरबोले,
को गावत है।
मन को कोई,
यूं ही भावत है।
मन की पीडा,
को कभी कभी,
मन के भाषा,
से छावत है।
मन हार गये,
मन जावक है।
मन जीत गये,
भरमावत है।
मन के हैं,
रुप कई दर्पण,
मन भाषा मे,
ही बुझावत है।
मन कहे 'अनिल',
मनःस्थिति,
मन को ही,
आंख दिखावत है।
~ अनिल कुमार बरनवाल
06.08.2018
मन चाहत है।
मन कभी कभी,
समझावत है।
मन हरबोले,
को गावत है।
मन को कोई,
यूं ही भावत है।
मन की पीडा,
को कभी कभी,
मन के भाषा,
से छावत है।
मन हार गये,
मन जावक है।
मन जीत गये,
भरमावत है।
मन के हैं,
रुप कई दर्पण,
मन भाषा मे,
ही बुझावत है।
मन कहे 'अनिल',
मनःस्थिति,
मन को ही,
आंख दिखावत है।
~ अनिल कुमार बरनवाल
06.08.2018
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