जी लिया हूँ जी गया हूँ,
जीते जीते मर न जाऊं।
आज जीने की तपिस में,
ऐसा कुछ मैं करता जाऊं।
रात की गहरी तमस मे,
आस का दीपक जलाऊ।
निशब्द होते इस गगन में,
अमन का एक गीत गाऊं।
हर कली बन फूल महके,
फूल का गजरा बनाऊं।
चमन महके सुमन महके,
महक से ना बहक पाऊं।
अब धर्म जोडे जाति जोडे,
इस जुडन मे लिपट जाऊं।
आज कहता है 'अनिल' यूं,
मनस मानव बन सजाऊं।
छल प्रपंची व दुष्कपट में,
बस प्रेम का ही गीत गाऊं।
~ अनिल कुमार बरनवाल
14.09.2018
जीते जीते मर न जाऊं।
आज जीने की तपिस में,
ऐसा कुछ मैं करता जाऊं।
रात की गहरी तमस मे,
आस का दीपक जलाऊ।
निशब्द होते इस गगन में,
अमन का एक गीत गाऊं।
हर कली बन फूल महके,
फूल का गजरा बनाऊं।
चमन महके सुमन महके,
महक से ना बहक पाऊं।
अब धर्म जोडे जाति जोडे,
इस जुडन मे लिपट जाऊं।
आज कहता है 'अनिल' यूं,
मनस मानव बन सजाऊं।
छल प्रपंची व दुष्कपट में,
बस प्रेम का ही गीत गाऊं।
~ अनिल कुमार बरनवाल
14.09.2018
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